Thursday, November 29, 2012

पर क्यूँ

मेरी मोहब्बत का ऐसा हाल हुआ,
किसी से बयाँ न कर पाया।
न उसकी यादों ने जीने दिया,
और न जमाने के डर से मर पाया।

चलती है जहाँ तेरी बात,
मैं चुप सा हो जाता हूँ;
तेरे दिए जख्मों को मैं,
किसी को दिखा भी नहीं पाया।
गर करूँगा तेरी बुराई मैं,
तो लोग मुझ पे हसेंगे;
कहेंगे-इस बेवफा के लिए,
छोड़ा तूने अपना साया।

इसलिए दर्द-ए-दिल को,
दबाकर रखा है सीने में।
तेरी यादों को ही मैंने;
अब हमसफ़र अपना बनाया।
मुझे मालूम है तू अबतक,
मुझे दिल से भुला चुकी होगी ;
'वो पागल तो मर चूका होगा अब तक'
इस तरह दिल को समझा चुकी होगी।

न जाने फिर क्यूँ तू मुझसे ,
भुलाई नहीं जाती?
तुझे तो नहीं आती मेरी याद,
पर क्यूँ मैं तुझे?
अभी तक नहीं भुला पाया।

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