मेरी मोहब्बत का ऐसा हाल हुआ,किसी से बयाँ न कर पाया।न उसकी यादों ने जीने दिया,और न जमाने के डर से मर पाया।
चलती है जहाँ तेरी बात,मैं चुप सा हो जाता हूँ;तेरे दिए जख्मों को मैं,किसी को दिखा भी नहीं पाया।गर करूँगा तेरी बुराई मैं,तो लोग मुझ पे हसेंगे;कहेंगे-इस बेवफा के लिए,छोड़ा तूने अपना साया।
इसलिए दर्द-ए-दिल को,दबाकर रखा है सीने में।तेरी यादों को ही मैंने;अब हमसफ़र अपना बनाया।मुझे मालूम है तू अबतक,मुझे दिल से भुला चुकी होगी ;'वो पागल तो मर चूका होगा अब तक'इस तरह दिल को समझा चुकी होगी।
न जाने फिर क्यूँ तू मुझसे ,भुलाई नहीं जाती?तुझे तो नहीं आती मेरी याद,पर क्यूँ मैं तुझे?अभी तक नहीं भुला पाया।
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